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Reviews for The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'...

 The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law magazine reviews

The average rating for The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'... based on 2 reviews is 3 stars.has a rating of 3 stars

Review # 1 was written on 2013-02-21 00:00:00
0was given a rating of 3 stars Colleen Wills
This book was recommended to me by my father in law. It chronicles the life of my in-law’s ancestor that was best known for being a General at Gettysburg. I was also interested to find out that he was single-handedly responsible for creating the levee system for the Mississippi River, drafted routs for the Pacific Rail Road, and was the Commander of the Second Corps for the Southern Surrender.
Review # 2 was written on 2018-11-27 00:00:00
0was given a rating of 3 stars Thomas Carner
# किताब सारांश जीवनी साहित्य अपने आप में एक अद्भुत विधा है। किसी लेखक, कवि आदि की जीवनी है तो प्रमाण जुटाने हेतु काफ़ी मेहनत भी करनी होती है क्यों कि कई तरह की बातें प्रचलन में आ जाती हैं और सच झूठ को अलग करना ज़रा कठिन प्रतीत होता है। उस में भी लेखक यदि शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय जैसा हो तो क्या ही कहना। फ़िर भी इस जीवनी के लेखक ने कोई कसर नहीं रखी इसे पूरा करके पाठकों के समक्ष लेकर आने की। लेखक ने बांग्ला भाषा सीखी, कई बार लेखक की कर्मभूमि रंगून शहर गए, शरतचन्द्र के अनेक मित्रों, रिश्तेदारों आदि से भी मिले और यह प्रयास सतत् चौदह वर्षों तक यूं ही निरंतर चलता रहा। इस तपस्या का ही परिणाम है यह बेहतरीन जीवनी। जब लेखक विष्णु प्रभाकर जी ने प्रमाण जुटाने के क्रम में लोगों से बात की, तो कुछ ऐसी चीज़ें सुनी :- "दो चार गुंडों-बदमाशों का जीवन देख लो करीब से, शरतचंद्र की जीवनी तैयार हो जाएगी ।" “छोड़ो भी, क्या था उसके जीवन में जो तुम पाठकों को देना चाहोगे। नितान्त स्वच्छन्द व्यक्ति का जीवन क्या किसी के लिए अनुकरणीय हो सकता है?” “तुम शरत् की जीवनी नहीं लिख सकते। अपनी भूमिका में यह बात स्पष्ट कर देना कि शरत् की जीवनी लिखना असम्भव है।” कई सज्जनों को इस बात से भी आपत्ति हुई कि इस अप्रतिम बांग्ला साहित्यकार की जीवनी एक गैर बंगाली कैसे लिख सकता है। लेकिन लेखक को इस किताब के विषय में शोध करते हुए काफ़ी आनंद आया और परिणाम हमारे सामने है - कथाशिल्पी शरतचंद्र की जीवनी आवारा मसीहा। "आवारा मसीहा" नाम के पीछे भी लेखक ने अपने तर्क दिए हैं, वो कहते हैं, "आवारा मनुष्य में सब गुण होते हैं पर उसके सामने दिशा नहीं होती। जिस दिन उसे दिशा मिल जाती है उसी दिन वह मसीहा बन जाता है।" पूरी किताब तीन भागों में बंटी हुई है - दिशाहारा, दिशा की खोज और दिशांत, काफ़ी कुछ इन भागों के नाम से ही स्पष्ट हो रहा होगा। पहला भाग दिशा हारा शरत के बचपन का लेखा जोखा है, दुःख, अपमान, अभाव और तिरस्कार से भरा हुआ बचपन । घोर गरीबी के कारण कभी अपने नाना के यहां भागलपुर में समय व्यतीत किया तो कभी देवानंद पुर में। कहते हैं ना "होनहार बीरवान के होत चिकने पात", बचपन से ही कपोल कल्पना के सागर में गोते लगाने वाला शरतचंद्र अपने मोहल्ले और इलाके में एक कहानीकार की तरह प्रसिद्ध था। सुमधुर कंठ जो अच्छे अच्छों का मन मोह लेता था और तेज़ दिमाग़ की वज़ह से पढाई में भी अव्वल थे। पढ़ाई लिखाई पैसों के अभाव में पूरी नहीं कर पाये पर लोक कल्याण के ढेर सारे काम किए। दया, करुणा, कृतघ्नता आदि गुण इनके अंदर शूरू से ही व्याप्त थे। चाहे किसी लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करना हो या किसी गरीब दुखिया की कोई मदद, शरतचंद्र कभी पीछे नहीं हटे l उनकी कहानियों के बहुत से पात्र भी यहां के उनके जीवन में सम्मिलित लोगों में से ही थे। किसी का भी दुख ना देख पाने वाले बालक शरत को कई बार रूढ़िवादी समाज की तीक्ष्ण आलोचना का शिकार भी होना पड़ा पर इस से उनके स्वभाव में कुछ खास फ़र्क नहीं आया। कहीं ना कहीं इन सारी बातों और बचपन के अनुभवों ने ही बालक शरतचंद्र को एक आकार दिया। दूसरे भाग "दिशा की खोज में" शरतचंद्र जीविका की खोज में रंगून (म्यांमार) निकल जाते हैं। रंगून में बंगाली भद्र लोक की मौजूदगी और उनकी संपन्नता ही कारण थी कि शरतचंद्र यहां तक आये। यहां पर प्लेग, मलेरिया जैसी असाध्य बीमारियां पहले से ही बुरी तरह से फैली हुईं थीं। अपने रंगून प्रवास के दिनों में शरत ने जमकर पढाई की और काफ़ी कुछ लिखा भी, अपने लेखन को हालांकि उन्होंने यहां पर कभी भी गंभीरता से नहीं लिया, हमेशा इसी भ्रम में रहे कि उनकी लेखनी अपरिपक्व है। कुछ कहानियां जब मित्रों के आग्रह पर कलकत्ता के साहित्यिक पत्रों में छपी तो जैसे बंगाल के साहित्यिक समाज में भूचाल आ गया हो। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ने स्वयं इनकी भूरी भूरी प्रशंसा की। भद्र लोक के बीच ना रहकर एक मलिन बस्ती में प्रवास किया और यहां रहने वाले गरीबों का ढेर सारा सुख दुःख भी साझा किया। अपनी कहानियों के बहुत से पात्र भी उन्हें यहां पर मिले। शरतचंद्र की कहानियों में हर वर्ग, जाति की महिलाओं को जो सम्मान मिलता है , उसका काफ़ी श्रेय उनके रंगून प्रवास को भी देना वाजिब होगा। रंगून में शरत ने काफ़ी कुछ पाया और संभवतः उस से कई गुणा ज्यादा खोया। गांजा, अफ़ीम, शराब की उनकी लत यहां बदस्तूर जारी थी या यूं कहिये कि अपने चरम पर थी। उनके चरित्र पर भी काफ़ी लांछन लगे और इतना गुणी होने के बाद भी उनको भद्र लोक सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता था। लगातार गिरते स्वास्थ्य के बावजूद भी शरतचंद्र ने यहां रहकर बहुत सी रचनाएं लिखीं और प्रकशित होते रहे। तीसरा भाग है दिशांत का जहां शरतचंद्र अपने मित्रों, प्रशंसकों के आग्रह पर स्वदेश लौटकर आ जाते हैं। कई बार लोगों ने कलकत्ता के बदनाम कोठों पर शरत बाबू को रचनाकर्म में भी तल्लीन पाया। उन्हें इस बात की कोई फ़िक्र ना थी कि समाज उनके चरित्र के विषय में कैसी बातें करता है। बंगाल की महिलाओं ने तो उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए शरत बाबू को सम्मानित भी किया। किसी भी नारीवादी लेखन में रुचि रखने वाले साथी को शरतचन्द्र का साहित्य ज़रूर पढ़ना चाहिए। एक और जहां लोग उन्हें बेइंतहा पसंद करते थे , वहीं दूसरी तरफ़ उनके आलोचकों की भी कमी नहीं थी, आये दिन उनकी कहानियों के किरदारों के ऊपर आपत्ति प्रकट करने लोग आ जाते थे और अपना रोष विभिन्न तरीकों से व्यक्त करते थे। शरत बाबू को जानवरों से भी उतना ही या सच कहूं तो संभवतः ज्यादा स्नेह था, अपने कुत्ते भेलू को तो वो अत्यधिक प्रेम करते थे। राजनीति में भी देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर शरतचंद्र कुछ समय तक सक्रिय रहे। जीवन के अंतिम वर्षों में उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और मात्र ६२ वर्ष की आयु में मृत्यु ने आखिर इस महान कथाशिल्पी को भी हमसे दूर कर दिया। सोचता हूं इस से साहित्य की कितनी क्षति हुई। किताब की भाषा सरल, प्रवाहमयी और पाठक को बांधने वाली है। लेखक ने घटनाओं के माध्यम से जगह जगह बताया है कि शरतचंद्र के वास्तविक जीवन के कौन से पात्र उनकी कहानियों में किस रूप में अवतरित हुए हैं। "आवारा मसीहा" पढ़कर मन कर रहा है कि शरतचंद्र की कहनियां फ़िर से दोहराऊं, इस बार शायद मुझे देवदास, श्रीकांत, परिणीता और चरित्रहीन के किरदार नई रोशनी में बेहतर समझ आयें। इस बेहतरीन प्रयास के लिए आवारा मसीहा के लेखक को नमन। लेखक : विष्णु प्रभाकर


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