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Title: The Law of Receiverships as Established and Applied in the United States, Great Britain and ...
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Item Number: 9781152366787
Number: 1
Product Description: Full Name: The Law of Receiverships as Established and Applied in the United States, Great Britain and ...; Short Name:The Law of Receiverships as Established and Applied in the United States
Universal Product Code (UPC): 9781152366787
WonderClub Stock Keeping Unit (WSKU): 9781152366787
Rating: 3/5 based on 2 Reviews
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Date Added: August 25, 2020, Added By: Ross
Date Last Edited: August 25, 2020, Edited By: Ross
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$99.99 | Digital |
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Bob Doe
reviewed The Law of Receiverships as Established and Applied in the United States, Great Britain and ... on November 27, 2018# किताब सारांश
जीवनी साहितà¥à¤¯ अपने आप में à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ विधा है। किसी लेखक, कवि आदि की जीवनी है तो पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ हेतॠकाफ़ी मेहनत à¤à¥€ करनी होती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कि कई तरह की बातें पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में आ जाती हैं और सच à¤à¥‚ठको अलग करना ज़रा कठिन पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। उस में à¤à¥€ लेखक यदि शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° चटà¥à¤Ÿà¥‹à¤ªà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ जैसा हो तो कà¥à¤¯à¤¾ ही कहना। फ़िर à¤à¥€ इस जीवनी के लेखक ने कोई कसर नहीं रखी इसे पूरा करके पाठकों के समकà¥à¤· लेकर आने की। लेखक ने बांगà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ सीखी, कई बार लेखक की करà¥à¤®à¤à¥‚मि रंगून शहर गà¤, शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° के अनेक मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ आदि से à¤à¥€ मिले और यह पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ सततॠचौदह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक यूं ही निरंतर चलता रहा। इस तपसà¥à¤¯à¤¾ का ही परिणाम है यह बेहतरीन जीवनी। जब लेखक विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤° जी ने पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ के कà¥à¤°à¤® में लोगों से बात की, तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ चीज़ें सà¥à¤¨à¥€ :-
"दो चार गà¥à¤‚डों-बदमाशों का जीवन देख लो करीब से, शरतचंदà¥à¤° की जीवनी तैयार हो जाà¤à¤—ी ।"
“छोड़ो à¤à¥€, कà¥à¤¯à¤¾ था उसके जीवन में जो तà¥à¤® पाठकों को देना चाहोगे। नितानà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¨à¥à¤¦ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का जीवन कà¥à¤¯à¤¾ किसी के लिठअनà¥à¤•à¤°à¤£à¥€à¤¯ हो सकता है?â€
“तà¥à¤® शरतॠकी जीवनी नहीं लिख सकते। अपनी à¤à¥‚मिका में यह बात सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर देना कि शरतॠकी जीवनी लिखना असमà¥à¤à¤µ है।â€
कई सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ को इस बात से à¤à¥€ आपतà¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ कि इस अपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤® बांगà¥à¤²à¤¾ साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° की जीवनी à¤à¤• गैर बंगाली कैसे लिख सकता है। लेकिन लेखक को इस किताब के विषय में शोध करते हà¥à¤ काफ़ी आनंद आया और परिणाम हमारे सामने है - कथाशिलà¥à¤ªà¥€ शरतचंदà¥à¤° की जीवनी आवारा मसीहा। "आवारा मसीहा" नाम के पीछे à¤à¥€ लेखक ने अपने तरà¥à¤• दिठहैं, वो कहते हैं, "आवारा मनà¥à¤·à¥à¤¯ में सब गà¥à¤£ होते हैं पर उसके सामने दिशा नहीं होती। जिस दिन उसे दिशा मिल जाती है उसी दिन वह मसीहा बन जाता है।" पूरी किताब तीन à¤à¤¾à¤—ों में बंटी हà¥à¤ˆ है - दिशाहारा, दिशा की खोज और दिशांत, काफ़ी कà¥à¤› इन à¤à¤¾à¤—ों के नाम से ही सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो रहा होगा।
पहला à¤à¤¾à¤— दिशा हारा शरत के बचपन का लेखा जोखा है, दà¥à¤ƒà¤–, अपमान, अà¤à¤¾à¤µ और तिरसà¥à¤•à¤¾à¤° से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† बचपन । घोर गरीबी के कारण कà¤à¥€ अपने नाना के यहां à¤à¤¾à¤—लपà¥à¤° में समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ किया तो कà¤à¥€ देवानंद पà¥à¤° में। कहते हैं ना "होनहार बीरवान के होत चिकने पात", बचपन से ही कपोल कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के सागर में गोते लगाने वाला शरतचंदà¥à¤° अपने मोहलà¥à¤²à¥‡ और इलाके में à¤à¤• कहानीकार की तरह पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ था। सà¥à¤®à¤§à¥à¤° कंठजो अचà¥à¤›à¥‡ अचà¥à¤›à¥‹à¤‚ का मन मोह लेता था और तेज़ दिमाग़ की वज़ह से पढाई में à¤à¥€ अवà¥à¤µà¤² थे। पढ़ाई लिखाई पैसों के अà¤à¤¾à¤µ में पूरी नहीं कर पाये पर लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के ढेर सारे काम किà¤à¥¤ दया, करà¥à¤£à¤¾, कृतघà¥à¤¨à¤¤à¤¾ आदि गà¥à¤£ इनके अंदर शूरू से ही वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ थे। चाहे किसी लावारिस लाश का अंतिम संसà¥à¤•à¤¾à¤° करना हो या किसी गरीब दà¥à¤–िया की कोई मदद, शरतचंदà¥à¤° कà¤à¥€ पीछे नहीं हटे l उनकी कहानियों के बहà¥à¤¤ से पातà¥à¤° à¤à¥€ यहां के उनके जीवन में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ लोगों में से ही थे। किसी का à¤à¥€ दà¥à¤– ना देख पाने वाले बालक शरत को कई बार रूढ़िवादी समाज की तीकà¥à¤·à¥à¤£ आलोचना का शिकार à¤à¥€ होना पड़ा पर इस से उनके सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ में कà¥à¤› खास फ़रà¥à¤• नहीं आया। कहीं ना कहीं इन सारी बातों और बचपन के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ ने ही बालक शरतचंदà¥à¤° को à¤à¤• आकार दिया।
दूसरे à¤à¤¾à¤— "दिशा की खोज में" शरतचंदà¥à¤° जीविका की खोज में रंगून (मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार) निकल जाते हैं। रंगून में बंगाली à¤à¤¦à¥à¤° लोक की मौजूदगी और उनकी संपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ ही कारण थी कि शरतचंदà¥à¤° यहां तक आये। यहां पर पà¥à¤²à¥‡à¤—, मलेरिया जैसी असाधà¥à¤¯ बीमारियां पहले से ही बà¥à¤°à¥€ तरह से फैली हà¥à¤ˆà¤‚ थीं। अपने रंगून पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दिनों में शरत ने जमकर पढाई की और काफ़ी कà¥à¤› लिखा à¤à¥€, अपने लेखन को हालांकि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यहां पर कà¤à¥€ à¤à¥€ गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से नहीं लिया, हमेशा इसी à¤à¥à¤°à¤® में रहे कि उनकी लेखनी अपरिपकà¥à¤µ है। कà¥à¤› कहानियां जब मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के आगà¥à¤°à¤¹ पर कलकतà¥à¤¤à¤¾ के साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में छपी तो जैसे बंगाल के साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• समाज में à¤à¥‚चाल आ गया हो। कविगà¥à¤°à¥ रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ इनकी à¤à¥‚री à¤à¥‚री पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की। à¤à¤¦à¥à¤° लोक के बीच ना रहकर à¤à¤• मलिन बसà¥à¤¤à¥€ में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ किया और यहां रहने वाले गरीबों का ढेर सारा सà¥à¤– दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥€ साà¤à¤¾ किया। अपनी कहानियों के बहà¥à¤¤ से पातà¥à¤° à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यहां पर मिले। शरतचंदà¥à¤° की कहानियों में हर वरà¥à¤—, जाति की महिलाओं को जो समà¥à¤®à¤¾à¤¨ मिलता है , उसका काफ़ी शà¥à¤°à¥‡à¤¯ उनके रंगून पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ को à¤à¥€ देना वाजिब होगा। रंगून में शरत ने काफ़ी कà¥à¤› पाया और संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ उस से कई गà¥à¤£à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खोया। गांजा, अफ़ीम, शराब की उनकी लत यहां बदसà¥à¤¤à¥‚र जारी थी या यूं कहिये कि अपने चरम पर थी। उनके चरितà¥à¤° पर à¤à¥€ काफ़ी लांछन लगे और इतना गà¥à¤£à¥€ होने के बाद à¤à¥€ उनको à¤à¤¦à¥à¤° लोक समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से नहीं देखता था। लगातार गिरते सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के बावजूद à¤à¥€ शरतचंदà¥à¤° ने यहां रहकर बहà¥à¤¤ सी रचनाà¤à¤‚ लिखीं और पà¥à¤°à¤•à¤¶à¤¿à¤¤ होते रहे।
तीसरा à¤à¤¾à¤— है दिशांत का जहां शरतचंदà¥à¤° अपने मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, पà¥à¤°à¤¶à¤‚सकों के आगà¥à¤°à¤¹ पर सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ लौटकर आ जाते हैं। कई बार लोगों ने कलकतà¥à¤¤à¤¾ के बदनाम कोठों पर शरत बाबू को रचनाकरà¥à¤® में à¤à¥€ तलà¥à¤²à¥€à¤¨ पाया। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इस बात की कोई फ़िकà¥à¤° ना थी कि समाज उनके चरितà¥à¤° के विषय में कैसी बातें करता है। बंगाल की महिलाओं ने तो उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपनी कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करते हà¥à¤ शरत बाबू को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ à¤à¥€ किया। किसी à¤à¥€ नारीवादी लेखन में रà¥à¤šà¤¿ रखने वाले साथी को शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° का साहितà¥à¤¯ ज़रूर पढ़ना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤• और जहां लोग उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बेइंतहा पसंद करते थे , वहीं दूसरी तरफ़ उनके आलोचकों की à¤à¥€ कमी नहीं थी, आये दिन उनकी कहानियों के किरदारों के ऊपर आपतà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करने लोग आ जाते थे और अपना रोष विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ तरीकों से वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करते थे। शरत बाबू को जानवरों से à¤à¥€ उतना ही या सच कहूं तो संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ था, अपने कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‡ à¤à¥‡à¤²à¥‚ को तो वो अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤® करते थे। राजनीति में à¤à¥€ देशबंधॠचितरंजन दास के साथ मिलकर शरतचंदà¥à¤° कà¥à¤› समय तक सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ रहे। जीवन के अंतिम वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उनका सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ लगातार गिरता रहा और मातà¥à¤° ६२ वरà¥à¤· की आयॠमें मृतà¥à¤¯à¥ ने आखिर इस महान कथाशिलà¥à¤ªà¥€ को à¤à¥€ हमसे दूर कर दिया। सोचता हूं इस से साहितà¥à¤¯ की कितनी कà¥à¤·à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤
किताब की à¤à¤¾à¤·à¤¾ सरल, पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤®à¤¯à¥€ और पाठक को बांधने वाली है। लेखक ने घटनाओं के माधà¥à¤¯à¤® से जगह जगह बताया है कि शरतचंदà¥à¤° के वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जीवन के कौन से पातà¥à¤° उनकी कहानियों में किस रूप में अवतरित हà¥à¤ हैं। "आवारा मसीहा" पढ़कर मन कर रहा है कि शरतचंदà¥à¤° की कहनियां फ़िर से दोहराऊं, इस बार शायद मà¥à¤à¥‡ देवदास, शà¥à¤°à¥€à¤•à¤¾à¤‚त, परिणीता और चरितà¥à¤°à¤¹à¥€à¤¨ के किरदार नई रोशनी में बेहतर समठआयें। इस बेहतरीन पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ के लिठआवारा मसीहा के लेखक को नमन।
लेखक : विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤°
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