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Title: The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'...
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Item Number: 9781151378163
Number: 1
Product Description: Full Name: The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'...; Short Name:The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law
Universal Product Code (UPC): 9781151378163
WonderClub Stock Keeping Unit (WSKU): 9781151378163
Rating: 3/5 based on 2 Reviews
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Date Added: August 25, 2020, Added By: Ross
Date Last Edited: August 25, 2020, Edited By: Ross
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$99.99 | Digital |
| WonderClub (9290 total ratings) |
Colleen Wills
reviewed The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'... on February 21, 2013This book was recommended to me by my father in law. It chronicles the life of my in-law’s ancestor that was best known for being a General at Gettysburg. I was also interested to find out that he was single-handedly responsible for creating the levee system for the Mississippi River, drafted routs for the Pacific Rail Road, and was the Commander of the Second Corps for the Southern Surrender.
Thomas Carner
reviewed The Practice and Courts of Civil and Ecclesiastical Law, and the Statements in Mr. Bouverie'... on November 27, 2018# किताब सारांश
जीवनी साहितà¥à¤¯ अपने आप में à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ विधा है। किसी लेखक, कवि आदि की जीवनी है तो पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ हेतॠकाफ़ी मेहनत à¤à¥€ करनी होती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कि कई तरह की बातें पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में आ जाती हैं और सच à¤à¥‚ठको अलग करना ज़रा कठिन पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। उस में à¤à¥€ लेखक यदि शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° चटà¥à¤Ÿà¥‹à¤ªà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ जैसा हो तो कà¥à¤¯à¤¾ ही कहना। फ़िर à¤à¥€ इस जीवनी के लेखक ने कोई कसर नहीं रखी इसे पूरा करके पाठकों के समकà¥à¤· लेकर आने की। लेखक ने बांगà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ सीखी, कई बार लेखक की करà¥à¤®à¤à¥‚मि रंगून शहर गà¤, शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° के अनेक मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ आदि से à¤à¥€ मिले और यह पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ सततॠचौदह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक यूं ही निरंतर चलता रहा। इस तपसà¥à¤¯à¤¾ का ही परिणाम है यह बेहतरीन जीवनी। जब लेखक विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤° जी ने पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ के कà¥à¤°à¤® में लोगों से बात की, तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ चीज़ें सà¥à¤¨à¥€ :-
"दो चार गà¥à¤‚डों-बदमाशों का जीवन देख लो करीब से, शरतचंदà¥à¤° की जीवनी तैयार हो जाà¤à¤—ी ।"
“छोड़ो à¤à¥€, कà¥à¤¯à¤¾ था उसके जीवन में जो तà¥à¤® पाठकों को देना चाहोगे। नितानà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¨à¥à¤¦ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का जीवन कà¥à¤¯à¤¾ किसी के लिठअनà¥à¤•à¤°à¤£à¥€à¤¯ हो सकता है?â€
“तà¥à¤® शरतॠकी जीवनी नहीं लिख सकते। अपनी à¤à¥‚मिका में यह बात सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर देना कि शरतॠकी जीवनी लिखना असमà¥à¤à¤µ है।â€
कई सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ को इस बात से à¤à¥€ आपतà¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ कि इस अपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤® बांगà¥à¤²à¤¾ साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° की जीवनी à¤à¤• गैर बंगाली कैसे लिख सकता है। लेकिन लेखक को इस किताब के विषय में शोध करते हà¥à¤ काफ़ी आनंद आया और परिणाम हमारे सामने है - कथाशिलà¥à¤ªà¥€ शरतचंदà¥à¤° की जीवनी आवारा मसीहा। "आवारा मसीहा" नाम के पीछे à¤à¥€ लेखक ने अपने तरà¥à¤• दिठहैं, वो कहते हैं, "आवारा मनà¥à¤·à¥à¤¯ में सब गà¥à¤£ होते हैं पर उसके सामने दिशा नहीं होती। जिस दिन उसे दिशा मिल जाती है उसी दिन वह मसीहा बन जाता है।" पूरी किताब तीन à¤à¤¾à¤—ों में बंटी हà¥à¤ˆ है - दिशाहारा, दिशा की खोज और दिशांत, काफ़ी कà¥à¤› इन à¤à¤¾à¤—ों के नाम से ही सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो रहा होगा।
पहला à¤à¤¾à¤— दिशा हारा शरत के बचपन का लेखा जोखा है, दà¥à¤ƒà¤–, अपमान, अà¤à¤¾à¤µ और तिरसà¥à¤•à¤¾à¤° से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† बचपन । घोर गरीबी के कारण कà¤à¥€ अपने नाना के यहां à¤à¤¾à¤—लपà¥à¤° में समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ किया तो कà¤à¥€ देवानंद पà¥à¤° में। कहते हैं ना "होनहार बीरवान के होत चिकने पात", बचपन से ही कपोल कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के सागर में गोते लगाने वाला शरतचंदà¥à¤° अपने मोहलà¥à¤²à¥‡ और इलाके में à¤à¤• कहानीकार की तरह पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ था। सà¥à¤®à¤§à¥à¤° कंठजो अचà¥à¤›à¥‡ अचà¥à¤›à¥‹à¤‚ का मन मोह लेता था और तेज़ दिमाग़ की वज़ह से पढाई में à¤à¥€ अवà¥à¤µà¤² थे। पढ़ाई लिखाई पैसों के अà¤à¤¾à¤µ में पूरी नहीं कर पाये पर लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के ढेर सारे काम किà¤à¥¤ दया, करà¥à¤£à¤¾, कृतघà¥à¤¨à¤¤à¤¾ आदि गà¥à¤£ इनके अंदर शूरू से ही वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ थे। चाहे किसी लावारिस लाश का अंतिम संसà¥à¤•à¤¾à¤° करना हो या किसी गरीब दà¥à¤–िया की कोई मदद, शरतचंदà¥à¤° कà¤à¥€ पीछे नहीं हटे l उनकी कहानियों के बहà¥à¤¤ से पातà¥à¤° à¤à¥€ यहां के उनके जीवन में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ लोगों में से ही थे। किसी का à¤à¥€ दà¥à¤– ना देख पाने वाले बालक शरत को कई बार रूढ़िवादी समाज की तीकà¥à¤·à¥à¤£ आलोचना का शिकार à¤à¥€ होना पड़ा पर इस से उनके सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ में कà¥à¤› खास फ़रà¥à¤• नहीं आया। कहीं ना कहीं इन सारी बातों और बचपन के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ ने ही बालक शरतचंदà¥à¤° को à¤à¤• आकार दिया।
दूसरे à¤à¤¾à¤— "दिशा की खोज में" शरतचंदà¥à¤° जीविका की खोज में रंगून (मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार) निकल जाते हैं। रंगून में बंगाली à¤à¤¦à¥à¤° लोक की मौजूदगी और उनकी संपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ ही कारण थी कि शरतचंदà¥à¤° यहां तक आये। यहां पर पà¥à¤²à¥‡à¤—, मलेरिया जैसी असाधà¥à¤¯ बीमारियां पहले से ही बà¥à¤°à¥€ तरह से फैली हà¥à¤ˆà¤‚ थीं। अपने रंगून पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दिनों में शरत ने जमकर पढाई की और काफ़ी कà¥à¤› लिखा à¤à¥€, अपने लेखन को हालांकि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यहां पर कà¤à¥€ à¤à¥€ गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से नहीं लिया, हमेशा इसी à¤à¥à¤°à¤® में रहे कि उनकी लेखनी अपरिपकà¥à¤µ है। कà¥à¤› कहानियां जब मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के आगà¥à¤°à¤¹ पर कलकतà¥à¤¤à¤¾ के साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में छपी तो जैसे बंगाल के साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• समाज में à¤à¥‚चाल आ गया हो। कविगà¥à¤°à¥ रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ इनकी à¤à¥‚री à¤à¥‚री पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की। à¤à¤¦à¥à¤° लोक के बीच ना रहकर à¤à¤• मलिन बसà¥à¤¤à¥€ में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ किया और यहां रहने वाले गरीबों का ढेर सारा सà¥à¤– दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥€ साà¤à¤¾ किया। अपनी कहानियों के बहà¥à¤¤ से पातà¥à¤° à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यहां पर मिले। शरतचंदà¥à¤° की कहानियों में हर वरà¥à¤—, जाति की महिलाओं को जो समà¥à¤®à¤¾à¤¨ मिलता है , उसका काफ़ी शà¥à¤°à¥‡à¤¯ उनके रंगून पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ को à¤à¥€ देना वाजिब होगा। रंगून में शरत ने काफ़ी कà¥à¤› पाया और संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ उस से कई गà¥à¤£à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खोया। गांजा, अफ़ीम, शराब की उनकी लत यहां बदसà¥à¤¤à¥‚र जारी थी या यूं कहिये कि अपने चरम पर थी। उनके चरितà¥à¤° पर à¤à¥€ काफ़ी लांछन लगे और इतना गà¥à¤£à¥€ होने के बाद à¤à¥€ उनको à¤à¤¦à¥à¤° लोक समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से नहीं देखता था। लगातार गिरते सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के बावजूद à¤à¥€ शरतचंदà¥à¤° ने यहां रहकर बहà¥à¤¤ सी रचनाà¤à¤‚ लिखीं और पà¥à¤°à¤•à¤¶à¤¿à¤¤ होते रहे।
तीसरा à¤à¤¾à¤— है दिशांत का जहां शरतचंदà¥à¤° अपने मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, पà¥à¤°à¤¶à¤‚सकों के आगà¥à¤°à¤¹ पर सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ लौटकर आ जाते हैं। कई बार लोगों ने कलकतà¥à¤¤à¤¾ के बदनाम कोठों पर शरत बाबू को रचनाकरà¥à¤® में à¤à¥€ तलà¥à¤²à¥€à¤¨ पाया। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इस बात की कोई फ़िकà¥à¤° ना थी कि समाज उनके चरितà¥à¤° के विषय में कैसी बातें करता है। बंगाल की महिलाओं ने तो उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपनी कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करते हà¥à¤ शरत बाबू को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ à¤à¥€ किया। किसी à¤à¥€ नारीवादी लेखन में रà¥à¤šà¤¿ रखने वाले साथी को शरतचनà¥à¤¦à¥à¤° का साहितà¥à¤¯ ज़रूर पढ़ना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤• और जहां लोग उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बेइंतहा पसंद करते थे , वहीं दूसरी तरफ़ उनके आलोचकों की à¤à¥€ कमी नहीं थी, आये दिन उनकी कहानियों के किरदारों के ऊपर आपतà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करने लोग आ जाते थे और अपना रोष विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ तरीकों से वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करते थे। शरत बाबू को जानवरों से à¤à¥€ उतना ही या सच कहूं तो संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ था, अपने कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‡ à¤à¥‡à¤²à¥‚ को तो वो अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤® करते थे। राजनीति में à¤à¥€ देशबंधॠचितरंजन दास के साथ मिलकर शरतचंदà¥à¤° कà¥à¤› समय तक सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ रहे। जीवन के अंतिम वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उनका सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ लगातार गिरता रहा और मातà¥à¤° ६२ वरà¥à¤· की आयॠमें मृतà¥à¤¯à¥ ने आखिर इस महान कथाशिलà¥à¤ªà¥€ को à¤à¥€ हमसे दूर कर दिया। सोचता हूं इस से साहितà¥à¤¯ की कितनी कà¥à¤·à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤
किताब की à¤à¤¾à¤·à¤¾ सरल, पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤®à¤¯à¥€ और पाठक को बांधने वाली है। लेखक ने घटनाओं के माधà¥à¤¯à¤® से जगह जगह बताया है कि शरतचंदà¥à¤° के वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जीवन के कौन से पातà¥à¤° उनकी कहानियों में किस रूप में अवतरित हà¥à¤ हैं। "आवारा मसीहा" पढ़कर मन कर रहा है कि शरतचंदà¥à¤° की कहनियां फ़िर से दोहराऊं, इस बार शायद मà¥à¤à¥‡ देवदास, शà¥à¤°à¥€à¤•à¤¾à¤‚त, परिणीता और चरितà¥à¤°à¤¹à¥€à¤¨ के किरदार नई रोशनी में बेहतर समठआयें। इस बेहतरीन पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ के लिठआवारा मसीहा के लेखक को नमन।
लेखक : विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤°
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